नीलांबर पीतांबरपुर (पलामू):
लेस्लीगंज के हजरत अनजान शाहदाता रहमतुल्लाह अलैह का 89 वां उर्स रविवार को होगा। उर्स को लेकर अंजुमन मिलते इस्लामिया कमेटी के द्वारा तैयारी पूरी कर ली गई है। कमेटी ने मजार शरीफ का रंग रोगन कराया है। तो दूसरी ओर मजार परिसर को आकर्षक लाइट से सजाया जा रहा है। उर्स के मौके पर हिंदुस्तान के दो मशहूर कव्वालों के बीच मुकाबला होगा। अंजुमन मिल्लते इस्लामिया कमेटी के सदर हफिजुर्र रहमान ने बताया कि कव्वाली का मुकाबला बेलजियम कर्नाटक के प्लेबैक सिंगर व मशहूर कव्वाल आतिश मुराद एवं सैयदपुर उत्तर प्रदेश के फिल्म आर्टिस्ट प्लेबैक सिंगर व मशहूर कव्वाल आशिफ शाबरी के बीच होगा। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सह उद्घाटनकर्ता पांकी विधानसभा क्षेत्र के पूर्व विधायक देवेंद्र कुमार सिंह उर्फ बिट्टू सिंह होंगे। उर्स के मौके पर रविवार कि सुबह नमाज फजीर, गूस्ल एवं छीटा के उपरांत कमेटी की पहली चादरपोशी होगी। उसके बाद आम आवाम के लिए चादरपोशी का सिलसिला पूरे दिन और रात चलता रहेगा। हजरत अंजाम शाहदाता से जुड़ी है दोनों समुदायों की आस्था नीलाम्बर पीताम्बरपुर प्रखंड के पुराना बाजार में हजरत अनजान शाह दाता रहमतुल्लाह अलैह का मजार शरीफ है। यह मजार आमतौर पर बुढ़वा बाबा के नाम से प्रसिद्ध है। हिंदू हो या मुस्लिम दोनों समुदाय के लोगों की आस्था इस मजार से जुड़ी है। यही कारण है कि दोनों समुदाय के लोग दूर-दूर से यहां मत्था टेकने आते हैं और अपनी फरियादे सुनाते हैं। कहा जाता है कि यहां पर आने वाले हर किसी की मुराद पूरी होती है। बाबा के मजार से कोई खाली हाथ नहीं लौटता है। शैतानी हरकत से परेशान दुखियारों का यहां अक्सर आते जाते देखा जा सकता है। झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों से अपनी मनोकामना लेकर लोग यहां पहुंचते हैं। 600 वर्ष पूर्व से मजार का अस्तित्व शायद ही कोई हो जो बुढ़वा बाबा के मजार का इतिहास बता सके। किसी को भी स्पष्ट जानकारी नहीं है कि यह मजार अस्तित्व में कब आया। लोग इतना बताते हैं कि तकरीबन 600 वर्ष पूर्व से यह मजार शरीफ स्थापित है। यह भी जानकारी नहीं है कि बुढ़वा बाबा कौन थे, किस जाति धर्म के थे, कब आए और यहां कैसे पर्दा फरमाए। बुढ़वा बाबा के वास्तविकता के बारे में किसी को कुछ पता नहीं है। यही कारण है कि इस मजार का नाम अनजान शाहदाता दिया गया। चैनपुर राजा ने मजार के लिए दिया था जमीन कुछ स्थानीय लोग बताते हैं की बाबा किसी फौज में थे। इसी जगह पर पर्दा फरमा गए। आजादी से पहले यहां छोटा सा मजार हुआ करता था। बाद में मजार के विकास के लिए चैनपुर राजा ने यहां जमीन दान दिया। हजरत अनजान शाहदाता का जिक्र 1918 के सर्वे में देखा जा सकता है। इसके अलावा कहीं विशेष रूप से किसी को जानकारी नहीं है। कई वर्षों से अंजुमन मिलाते इस्लामिया कमेटी के द्वारा इस मजार की देखरेख कर की जा रही है।