लेखक: अनिल अमिताभ पन्ना
30 जुलाई 2025 की यह तिथि हम आदिवासी समाज के लिए केवल एक साधारण स्मरण दिवस नहीं, बल्कि एक संघर्षशील, विचारशील और कर्मशील व्यक्तित्व की चतुर्थ पुण्यतिथि है — जो पीढ़ियों तक हमें प्रेरणा देता रहेगा।
यह स्मृति है स्व. प्रकाश पन्ना ‘पंकज’ की — एक ऐसे सजग समाजसेवी, आदिवासी बौद्धिक आंदोलन के संवाहक, विद्वान और संघर्षशील पारिवारिक पुरुष की, जिन्होंने अपने जीवन से यह प्रमाणित किया कि सीमित संसाधनों के बीच भी ज्ञान, स्वाभिमान और समाज के प्रति समर्पण हो, तो असाधारण लक्ष्य भी साधे जा सकते हैं।
एक साधारण गांव से असाधारण यात्रा तक…
प्रकाश पन्ना ‘पंकज’ का जन्म झारखंड के गुमला जिले के बिशुनपुर थाना अंतर्गत सुदूर ग्राम लोंगा में हुआ था। यह वह समय था जब आदिवासी समाज शिक्षा, अधिकार और अस्मिता की प्राथमिक लड़ाई लड़ रहा था। बचपन में ही, महज 10 वर्ष की उम्र में पिता को खो देना, किसी भी बच्चे के लिए जीवन की बड़ी चुनौती होती है। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
उनका जीवन दर्शन तभी से आकार लेने लगा — संघर्ष से भागना नहीं, संघर्ष को आत्मसात कर उससे ऊपर उठना।
वे मानते थे कि शिक्षा ही आदिवासी समाज को अपनी गरिमा और हक के लिए खड़ा कर सकती है। उन्होंने उसी शिक्षा को अपना जीवन संकल्प बनाया।
शिक्षा: आत्मविकास की सीढ़ी
उनकी शिक्षा यात्रा संघर्षों से भरी रही, लेकिन इससे उन्होंने कभी हार नहीं मानी:
मैट्रिक: संत इग्नासियुस स्कूल, गुमला
I.Sc.: संत जेवियर कॉलेज, रांची
B.Sc. (Agri): बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, कांके
M.Sc. (Agri): पूसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, दिल्ली
Ph.D. (पंजीकृत): जेएनयू, दिल्ली — (आर्थिक अभाव के कारण अधूरा रह गया)
वे बिशुनपुर क्षेत्र के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने पूसा जैसे राष्ट्रीय संस्थान में उच्च शिक्षा प्राप्त की। यह आदिवासी समाज के लिए गौरव की बात थी। वे चाहते तो दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों में उच्च पदों पर रह सकते थे, लेकिन उन्होंने जनसेवा, समाज और परिवार को वरीयता दी।
उनका चयन भारतीय रिज़र्व बैंक, मुंबई में हुआ था, लेकिन आर्थिक, पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारियों के कारण वे उस नौकरी को ज्वाइन नहीं कर सके। इसके बाद उन्होंने Union Bank of India की सेवा को अपनाया और 32 वर्षों तक निष्ठा, सादगी और ईमानदारी के साथ कार्य किया।
बैंक अफसर से बौद्धिक योद्धा तक
प्रकाश पन्ना केवल एक बैंक अधिकारी नहीं थे, वे विचार और चेतना के योद्धा थे। उन्होंने रांची स्थित आदिवासी बौद्धिक मंच “अद्दी कुड़ुख चाःला धुमकुड़ि़या पड़हा अखड़ा” की स्थापना में अग्रणी भूमिका निभाई। यह मंच आज भी कुड़ुख भाषा, लिपि, संस्कृति और आदिवासी विचारधारा के प्रचार-प्रसार में सक्रिय है।
उनके लिए संस्कृति कोई संग्रहालय की वस्तु नहीं थी, बल्कि जीवंत चेतना थी, जो युवा पीढ़ी को जोड़ती है। वे कहते थे “अगर हम अपनी भाषा और संस्कृति को नहीं बचा पाए, तो हम इतिहास के किसी फुटनोट में सिमट जाएंगे।”
उन्होंने कुड़ुख भाषा में शिविर चलाए, कार्यशालाएँ आयोजित कीं और युवाओं को अपनी अस्मिता से जोड़ने का काम किया।
भाषा प्रेम: विचार का माध्यम, संघर्ष का औजार
वे बहुभाषी थे — कुड़ुख, हिंदी, अंग्रेजी, नागपुरी और बांग्ला भाषाओं में उनकी समान पकड़ थी। वे भाषाओं को केवल संवाद का साधन नहीं, बल्कि संघर्ष का औजार मानते थे।
उनका विश्वास था कि यदि युवा अपनी भाषा में सोचेंगे, लिखेंगे और बोलेंगे — तभी समाज में असली बदलाव आएगा। वे अंग्रेजी साहित्य के गहरे अध्येता थे, लेकिन अपनी मातृभाषा कुड़ुख के लिए उनका प्रेम और समर्पण अनुपम था।
बीमारी के दिनों में भी वे कुड़ुख-अंग्रेजी शब्दकोश, भाषा-संसाधन और साहित्य पर कार्य करते रहे। उनके कमरे में किताबें केवल सजावट नहीं, बल्कि साधना का हिस्सा थीं।
संघर्ष के बीच सेवा और संगठन
1995 में एक भयंकर सड़क दुर्घटना में उनकी रीढ़ की हड्डी गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो गई। वर्षों तक वे दर्द और असहनीय कष्ट से जूझते रहे। 2003 और 2007 में दो बड़ी सर्जरी हुई, लेकिन उन्होंने न कभी नौकरी छोड़ी, न समाजसेवा।
उन्होंने यूनियन बैंक के कर्मचारियों के बीच अपनी नेतृत्व क्षमता का परिचय दिया। तीन बार यूनियन बैंक इम्प्लॉई यूनियन के अध्यक्ष निर्विरोध चुने गए। यह उनकी ईमानदारी, विचारशीलता और नेतृत्व कौशल का प्रमाण था।
अंतिम पड़ाव: विचारों में जीता हुआ जीवन
2021 में एक बार फिर गिरने से उनकी रीढ़ की हड्डी में गहरी चोट आई। लंबी चिकित्सा और देखभाल के बाद 30 जुलाई 2021 को उन्होंने अंतिम सांस ली। लेकिन यह केवल शारीरिक विदाई थी — उनका जीवन और विचार आज भी जीवंत हैं।
एक नाम, जो पीढ़ियों को प्रेरणा देता रहेगा
प्रकाश पन्ना पंकज का जीवन आदिवासी युवाओं के लिए यह संदेश है “सीमाएँ कोई बाधा नहीं हैं, यदि आपके भीतर आत्मबल, ज्ञान और समाज के प्रति प्रतिबद्धता हो।”
वे उस पीढ़ी के प्रतिनिधि थे जो संघर्ष से निकली, लेकिन जो केवल खुद के लिए नहीं, समाज के लिए जिया।
आज की युवा पीढ़ी के लिए संदेश
इस लेख के माध्यम से हम आज की नई पीढ़ी से आग्रह करते हैं कि अपनी भाषा को जानो,अपने समाज की समस्याओं को समझो,संघर्ष करने से डरो मत,ज्ञान, आत्मसम्मान और सेवा को अपना जीवन-मंत्र बनाओ।
श्रद्धांजलि और संकल्प
आज, 30 जुलाई 2025 को, चतुर्थ पुण्यतिथि के अवसर पर, पूरा परिवार, मित्रगण, सहकर्मी, और आदिवासी समाज, प्रकाश पन्ना पंकज जी को कोटिशः नमन करता है।
उनकी स्मृतियाँ, उनका जीवन-दर्शन, और उनका संघर्ष हम सबके लिए एक अमर प्रेरणा स्रोत बना रहेगा।
आपका संघर्ष, आपकी विद्वता, आपकी संवेदना और आपकी स्मृतियाँ — हमारे जीवन की धरोहर हैं।
आप प्रेरणा थे, हैं और रहेंगे।
श्रद्धांजलि स्वरूप सादर नमन।

