मुम्बई
भोजपुर के रहनेवाले और भोजपुरी बोलने वाले देश के ही कोने-कोने में नहीं, बल्कि बड़ी संख्या में विदेश में भी रहते हैं। वहां अपनी भोजपुरी की पहचान बनाए रखते हैं। आरा शहर के नजदीक एक गांव है अख्तियारपुर। इस गांव के एक शख्स वहां से उठकर जाते हैं और बॉलीवुड में अपनी एक नई पहचान बनाते हैं। एक क्रांतिकारी पहचान। आपने वह गीत सुना होगा ‘मेरा जूता है जापानी, यह पतलून इंग्लिशतानी, सर पर लाल टोपी रुसी, फिर भी दिल है हिंदुस्तानी। इस गीत के लिखने वाले शख्स का नाम है- आरा के बॉलीवुड गीतकार शैलेंद्र। बेशक शैलेंद्र का जन्म भले रावलपिंडी में हुआ लेकिन उनके पुरखे है आरा में रहते थे। महज 43 साल की उम्र में 1966 में इस दुनिया को छोड़ने वाले कभी गीतकार शैलेंद्र अपने गीतों के माध्यम से अपनी रचनाओं के दम पर आज भी साहित्य और बॉलीवुड में जिंदा हैं और आगे भी रहेंगे। हिंदी साहित्य के प्रमुख विद्वान रामविलास शर्मा गीतकार शैलेंद्र को क्रांतिकारी कविताओं के कवि मानते हैं, तो नामवर सिंह उनको पहला दलित कवि कहते हैं, जो लोकधर्मी भी हैं और कलात्मक भी।
लाल फौज में थे शैलेंद्र के पिता
हिंदी सिनेमा के लिए सैकड़ों सदाबहार गीत लिखने वाले अमर गीतकार शैलेंद्र को दुनिया से गए पांच दशक हो गए। आज भी शैलेंद्र के लिखे गीत नई-पुरानी पीढ़ी के फेवरेट हैं। उन्होंने दो दशक से अधिक समय तक 170 फिल्मों में जिंदगी के हर फलसफे और जिंदगी के हर रंग पर गीत लिखे। उदवंत नगर प्रखंड के अख्तियारपुर गांव से जुड़े हुए थे।
प्रारंभ में छद्म नाम से शुरू किया था लिखना
जान लीजिए की अंत्याक्षरी के शौकीन शैलेंद्र बम्बई पहुंचे तो कविताओं की ओर उनका झुकाव बढ़ा। साल 1941 में शचिपति के उपनाम से और फिर 1945 में शंकर शैलेंद्र के नाम से उन्होंने तब की नामचीन पत्रिकाओं में लिखना शुरू किया। यार दुखद है कि आज बिहार में शैलेंद्र के पूर्वजों के घर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं। उनके परिजन गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैं। ‘सजन रे झूठ मत बोलो, खुदा के पास जाना है’ गीत लिखने वाले इस गीतकार की स्मृतियों को जिंदा रखने के लिए वर्तमान बिहार की नीतीश सरकार को कुछ करना चाहिए।