चिंगरी,बिशुनपुर में धूमधाम से मनाया गया जतरा टाना भगत की जयन्ती समारोह

हज़ारों की संख्या में पहुंचे राज्य भर के टाना भगत व उनके अनुयायी।

बिशुनपुर के चिंगरी में आज बहुत धूमधाम से छोटानागपुर के वीर स्वतंत्रता सेनानी व टाना आंदोलन के प्रणेता बाबा जतरा टाना भगत की जयंती मनायी गयी।हज़ारों की संख्या में राज्य भर से उनके अनुयायी अपने पारंपरिक वेश- भूषा में एक दिन पहले ही चिंगरी पहुंच गए थे।आज के ऐतिहासिक दिन के लिए आदिवासी समाज मे एक अलग तरह का उत्साह देखा गया।

टाना भगत का इतिहास 100 साल से भी पुराना है। जिन्होंने एक शताब्दी पहले ही तिरंगा को अपना धर्म मान लिया और महात्मा गांधी के सच्चे अनुयायी बन गए. स्वतंत्रता के आंदोलन में अंग्रेजों के खिलाफ टाना भगत की लड़ाई सराहनीय है. अंहिसा के पुजारी इस समुदाय ने अपने आंदोलन से ब्रिटिश शासन को छोटानागपुर की धरती छोड़ने पर मजबूर कर दिया.जहां एक ओर देश में क्रांतिकारी आंदोलन जारी था,वहीं छोटानागपुर की धरती में एक अलग तरह का टाना आंदोलन चल रहा था।यह आंदोलन विशुद्ध रूप से अपने जल जंगल ज़मीन बचाने और अपना हक-अधिकार के लिए था।

देश के लिए कुर्बानी देने वाले वीर सपूतों की लंबी फेहरिस्त है और कई हमें इतिहास के पन्नों में दर्ज मिलते हैं. ऐसे कई सिपाही हैं जिन्होंने देश को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त कराने के लिए लड़ाइयां लड़ी लेकिन वो गुमनाम हैं और उनका जिक्र कम ही मिलता है. ऐसे ही गुमनाम सिपाही लंबे समय तक बने रहें जतरा टाना भगत. वो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सच्चे अनुयायी हैं. इतिहास में इन्हें वो जगह नहीं मिली है जिनके वो हकदार हैं.

जतरा उरांव ने 1912 में शुरू किया था आंदोलनः देश को आजाद कराने के लिए टाना भगतों ने 1912 में आंदोलन शुरू किया था. टाना भगतों में सबसे पहला नाम जतरा उरांव का आता है. सन 28 सितंबर 1888 में गुमला जिला के बिशुनपुर प्रखंड के चिंगरी, नवाटोली में जन्मे जतरा उरांव ने जब होश संभाला तब देश में अंग्रेजों का आतंक था. 1912 में उन्होंने इस शोषण और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की ठानी. इसके साथ ही पशु बलि, शराब समेत तमाम बुराइयों को छोड़ कर अलग पंथ यानी रास्ते पर चलने का निर्णय लिया. मालगुजारी के खिलाफ जतरा उरांव का विद्रोह टाना भगत आंदोलन के रूप में बढ़ने लगा. 1914 में अंग्रेजों ने जतरा उरांव को गिरफ्तार कर डेढ़ साल की सजा दी गई. जेल से निकलने के बाद अचानक उनका निधन हो गया लेकिन टाना भगतों ने इस आंदोलन को जारी रखा, बाद में टाना भगत बापू के स्वदेशी आंदोलन से जुड़ गए.1942 में टाना भगतों ने पहली बार फहराया तिरंगाः साल 1914 में टाना भगतों ने लगान, सरकारी टैक्स देने और कुली के रूप में मजदूरी करने से साफ इनकार कर दिया. बिरसा मुंडा के नेतृत्व में हुए उलगुलान से प्रेरित होकर खुद को इस आंदोलन के लिए समर्पित कर दिया. 1940 में टाना भगत आंदोलनकारियों की बड़ी आबादी गांधीजी के सत्याग्रह से जुड़ गयी. 1942 में लोहरदगा के कुड़ू थाना में टाना भगतों ने पहली बार तिरंगा फहराया था. अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन करने की वजह से टाना भगतों को जेल भी जाना पड़ा. इसमें 6 टाना भगतों की मौत भी हो गई थी.

झारखण्ड के ऐसे स्वतंत्रता सेनानी जिसने सत्य -अहिंसा के दम पर टाना आन्दोलन के प्रणेता बाबा जतरा टाना भगत के जयन्ती समारोह आज मना रहे हैं। बलकु टाना भगत ने कहा कि पूर्व में हमें 1888 में जन्म लिए महान स्वतंत्रता सेनानी जतरा टाना भगत की जन्मतिथि ज्ञात नहीं होने की वजह से जयन्ती समारोह मना नहीं पाते थे।लेकिन अब सही तिथि ज्ञात हो गयी है तो इस लिए बड़े ही धूमधाम से इस दिन को याद कर रहे हैं।

लगातार समाज के लिए काम कर रहे बिशुनपुर के जनार्दन टाना भगत ने कहा कि बाबा जतरा टाना भगत सभी आदिवासियों के प्रेरणास्रोत हैं,उनके बताए मार्ग पर हमें चलना है।जतरा का सादा जीवन हमेशा युवाओं को प्रेरणा देता रहेगा। सामाजिक कार्यकर्ता व आदिवासी नेता अनिल पन्ना ने कहा कि बाबा जतरा टाना भगत का इतिहास झारखण्ड के हर युवाओं के लिए एक सीख है। जल जंगल ज़मीन की रक्षा के लिए कैसे अंग्रेजों से लोहा लिया। पहली बार हो रहा ,जब हम सभी आदिवासी समुदाय बाबा जतरा टाना भगत की जयंती उनके ही पैतृक गांव में बड़े धूमधाम से मना रहे।

इस मौके पर राजेश टाना भगत ने कहा कि बाबा जतरा का जीवन सादा था।वो अपने समाज और अपने लोगों के लिए प्रेरणादायक बने रहे।
इस मौके पर समारोह को सफल बनाने के लिए विभिन्न जिलो से आए टाना भगत के अनुयायी द्वारा अपने-अपने बहुमूल्य विचार प्रदान किये जिसमें विनय टाना भगत, सुखदेव टाना भगत, गुरुचरण टाना भगत, मधुसुदन टाना भगत, रामजीत टाना भगत, उमेश टाना भगत,अरविंद टाना भगत, जानकी टाना भगत, यशोदा टाना भगत, भूषण टाना भगत, सामाजिक कार्यकर्ता अनिल पन्ना, सिकन्दर, मंत्री, मंगले, बालेश्वर,बिहारी,चेतन,पवित्र, हीरामनी, बुधमनिया, सुशीला बसन्ती, तेतला,मंगल, शिबु, विश्वा, बरतिया टाना सहित भारी टाना भगत शामिल हुए।

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