पंचायत क्षेत्र की महिला पुरुष ग्रामीणों ने किया मुखिया का घेराव, रोड नहीं तो वोट नहीं के लगाए नारे –
मुखिया ने कहा सड़क व अन्य जरूरी सुविधाओं को लेकर सांसद व विधायक से मिलकर करते रहे हैं आग्रह
विश्रामपुर (पलामू)
विश्रामपुर प्रखंड स्थित पहाड़ की कंदराओं वह तलहटी के बीच बसा विश्रामपुर प्रखंड का घासीदाग पंचायत है। पंचायत का सभी गांव चारों ओर जंगल पहाड़ से घिरा है । यहां की प्राकृतिक सौंदर्य मनोरम व भरा पड़ा है । गांव विश्रामपुर प्रखंड मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर अवस्थित है। दर्शाने के लिए कोई उपलब्धि गांव के नाम दर्ज नहीं हो पाई है। भला हो भी कैसे। मूलभूत सुविधाएं भी गांव के लोगों को मयस्सर नहीं है।
खूबसूरत प्राकृतिक वादियों से घिरे इस गांव की बदकिस्मती यह है कि चारों ओर से जंगल पहाड़ से घिरे होने के कारण यहां कोई भी प्रशासनिक अधिकारी व जनप्रतिनिधि जाना मयस्सर नहीं समझते। जिसका परिणाम गांव का समुचित विकास नहीं हो पा रहा है । विकास की किरणें गांव तक नहीं पहुंच सके । यह पूरा गांव वालों के चेहरे पर साफ परिलक्षित होती है। आदिम जनजाति, आदिवासी, हरिजन व कुछ पिछड़ी जाति बहुल गांव में स्वास्थ्य केंद्र भी नहीं है । शिक्षा के नाम मात्र एक उत्क्रमित मध्य विद्यालय व एक आंगनबाड़ी केंद्र है। जो सिर्फ नाम मात्र की बनी है।
गांव के बच्चे किसी तरह प्राथमिक व मध्य विद्यालय आठवीं तक की शिक्षा प्राप्त कर लेते हैं । लेकिन बाद की शिक्षा प्राप्त करने के लिए गांव से 10 किलोमीटर दूर पांडु विद्यालय में जाना पड़ता है । गांव से बाहर जाने के लिए कोई पहुंच पथ नहीं है। नतीजतन लोगों को जंगल पहाड़ के बीच से होकर गुजरने पड़ती है। आजादी के 77 वर्षों के बाद भी गांव तक पक्की सड़क व बिजली नहीं पहुंच सकी है । यहां के ग्रामीणों का मुख्य पेशा कृषि है। लेकिन सिंचाई की सुविधा नदारद ।
लोगों का विश्वास है कि कभी न कभी इस गांव का विकास जरूर होगा । इस गांव में भी अन्य गांवों की तरह सड़क , बिजली, पानी, शिक्षा व स्वास्थ्य की बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएगी। ग्रामीणों ने एक स्वर में कहा रोड नहीं तो वोट नहीं। इस बार विधानसभा चुनाव में सभी मतदान न कर वोट का वहिष्कार करेंगे। जनप्रतिनिधि केवल उपभोग की वस्तु समझ कर उपयोग करते रहे हैं।
रविवार को पंचायत में मैया सम्मान योजना को लेकर ग्रामीणों की भीड़ लगी थी। ग्रामीणों ने सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा व स्वास्थ्य की बेहतर सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराने को लेकर घेराव किया। लोगों का कहना था कि सुविधा नहीं होने से गांव के लोगों को परेशानी होती है। बरसात के कारण सड़क कीचड़ में तब्दील हो गया है। गांव के मध्य से घुरिया नदी बहती है, जिसके कारण पंचायत क्षेत्र के लोग पंचायत मुख्यालय भी नहीं पहुंच पाते हैं। लोगों ने सुविधा उपलब्ध उपलब्ध कराने की मांग की। मुखिया अंजू देवी ने कहा कि पंचायत में सड़क व अन्य जरूरी सुविधाओं को लेकर सांसद व विधायक से मिलकर आग्रह करते रहे हैं। लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है। मुखिया ने ग्रामीणों को आश्वस्त किया कि एक बार समस्याओं को लेकर स्थानीय विधायक, सांसद सहित उपायुक्त से मिलकर आग्रह करेंगे।
4 वर्ष पूर्व हीं बह गई है पहुंच पथ
गांव तक जाने के लिए पगडंडी पर एक बांध बना था । जो 8 वर्ष की तेज बारिश में बह गई है । आज गांव के लोगों को 13 किलोमीटर की अधिक दूरी तय कर गांव आना पड़ता है । लोगों की बात माने तो गांव में कोई भी जनप्रतिनिधि आज तक नहीं पहुंचे। और न हीं लोग अपने जनप्रतिनिधि को ही पहचानते हैं । लोगों का कहना है कि चुनाव के समय पार्टी के कई कार्यकर्ता गांव में आकर लोगों को झूठे सब्जबाग दिखाकर मत अपने नाम कर लेते हैं । लेकिन जीत के बाद गांव तक आना गवारा नहीं समझते। सभी जीत के बाद चुनावी मुद्दे भूल जाते हैं।
आजादी के बाद गांव में पक्की सड़क और बिजली का इंतजार
सड़क :
आजादी के बाद भी गांव में पक्की सड़क नहीं बन सकी । सरकार ने कई साल पहल 65 सौ की आबादी वाले पंचायत को प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत कालीचरण करने का निर्णय लिया था। पलामू जिला के कई गांवों की सड़के पक्की भी हुई लेकिन प्रखंड का घासीदाग पंचायत के गांव को इस से वंचित रखा गया । पंचायत तक जाने के लिए पंचायत से मिट्टी, मोरंग व मेटल से भी सड़कें नहीं बन सकी। गांव के लोग पगडंडी के सहारे अपनी आवागमन करते हैं।
जबकि यह गांव विश्रामपुर प्रखंड मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर है। वहीं एनएच 98 से 10 किलोमीटर व एनएच 75 से 27 किलोमीटर दूरी पर बसा हुआ है। ऐसे में सड़क सुविधा गांव में नहीं होने के कारण काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। जमारी गांव सहित घासीदाग पंचायत विश्रामपुर प्रखंड का अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति बहुल क्षेत्र है। घासीदाग पंचायत क्षेत्र का जमारी गांव का अत्यंत पिछड़ा हुआ इलाका है। जमारी गांव चारो ओर पहाड़ियों से घिरा है। 2012-13 तक यह क्षेत्र नक्सलियों का गढ़ माना जाता था। नक्सलियों का खात्मा या मुख्यधारा लोटने के बाद भी गांव का विकास नही हो पाया।
शिक्षा :
गांव में एक उत्क्रमित विद्यालय अवस्थित है, उच्च शिक्षा के लिए 12 किलोमीटर पैदल जाना पड़ता है । वही आंगनवाड़ी केंद्र भी लोगों को समुचित सुविधा मुहैया नहीं कर पाती। नतीजतन यहां के लोगों में जागरूकता का घोर अभाव है।
बिजली :
आजादी के बाद ही इस गांव को बिजली नसीब नहीं हो सकी । राजीव गांधी विद्युतीकरण योजना के तहत गांव में बिजली पहुंचाने के उद्देश्य से बिजली के खंबा गांव में जरूर लगाए गए । लेकिन खंभा यूं ही पड़ा रह गया। कई बार गांव के ग्रामीण बिजली के लिए स्थानीय विधायक सांसद उपायुक्त व बिजली विभाग के अधिकारियों से भी गुहार लगाई । लेकिन इनसे केवल आश्वासन के सिवाय ग्रामीणों को कुछ नहीं मिला।
रोटी, कपड़ा व मकान
: रोटी कपड़ा वह मकान अनिवार्य आवश्यकताओ में से है। 2 जून की रोटी के लिए यहां के लोग खेती व मजदूरी पर आश्रित है। कृषि व मजदूरी इनका मुख्य पेषा है। इनसे अर्जित आय से रोटी व कपड़ों की व्यवस्था तो हो जाती है। लेकिन आवास की व्यवस्था इनके बस की नहीं। प्रधानमंत्री योजना के तहत कुछ लोगों का नाम सूची में आया है। जिन से कुछ बिचौलिए पैसे की भी उगाही करने में जुटे हैं । गांव के कुछ लोगों को इंदिरा आवास भी मिले थे। जो आज तक अधूरा पड़ा है।
सड़क , शिक्षा , स्वास्थ्य, बिजली आदि समस्या गांव के लिए एक बड़ी समस्या बन गई है। इन समस्याओं को लेकर स्थानीय विधायक, सांसद सहित उपायुक्त से मिलकर आग्रह किया जाता रहा है। एक फिर से पलामू उपायुक्त से मिलकर गांव में सारी सुविधा मुहैया कराने की मांग की जाएगी। अंजू देवी, मुखिया, घासीदाग पंचायत, विश्रामपुर, पलामू।