जिनके दर्शन से सत्य, संस्कृति, संस्कार और सदाचार से जीवन जीने की प्रेरणा प्राप्त हो वही गुरु
मेदिनीनगर (पलामू)
निगम क्षेत्र के सिंगरा अमानत नदी तट स्थित चातुर्मास व्रत कथा के दौरान श्री लक्ष्मीप्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि गुरु सिद्ध होना चाहिए चमत्कारी नहीं. जो परमात्मा की उपासना और भक्ति की सिद्धि किया हो वही गुरु है. गुरु का मन स्थिर वाणी संयमित होना चाहिए. गुरु राष्ट्र का समाज का और प्राणियों का मंगल व कल्याण करने वाला हो. दिनचर्या में समझौता नहीं करता हो. गुरू भोगी-विलासी नहीं होना चाहिए. गुरु, संत-महात्मा का आचरण आदर्श होना चाहिए. जिनके दर्शन के बाद परमात्मा के प्रति आशक्ति और मन में शांति का एहसास हो वही गुरु और संत की श्रेणी में है. गुरु दम्भी और इन्द्रियों में भटकाव वाला नहीं होना चाहिए. गुरु सभी स्थान व प्राणियों में परमात्मा की सत्ता स्वीकार करने वाला होना चाहिए. गुरु सादगी वृति में जीवन यापन करने वाला होना चाहिए. जिनके दर्शन से सत्य, संस्कृति, संस्कार और सदाचार से जीवन जीने की प्रेरणा प्राप्त हो वही गुरु. शास्त्र, समाज, संस्कृति को अपनी वाणी द्वारा अभिसिंचित कर सके. स्वामी जी महाराज ने कहा कि चारों वेद का सार तत्व है नारायण मंत्र. मंत्र जितने अक्षर का हो उतने ही लाख बार जप करना चाहिए. स्वामी जी महाराज ने कहा कि मंत्र, योग, साधना के पुजारी गौतम ऋषि थे.
संन्यासी का धर्म की क्या है. संन्यासी कहते किसे हैं
स्त्री, अग्नि, सोना-चांदी का स्पर्श नहीं करने वाला सन्यासी धर्म है. लकड़ी की भी बनाई हुई स्त्री की प्रतिमा हो उसे भी छूना वर्जित है। सन्यास का अर्थ सांसारिक बन्धनों से मुक्त होकर निष्काम भाव से प्रभु का निरन्तर स्मरण करते रहना है. संन्यास का व्रत धारण करने वाला संन्यासी कहलाता है.
हमारे आपके शरीर इक्कीस हजार छ: सौ बार स्वयं मंत्र जपते रहते हैं. इसे अजपा मंत्र कहा जाता है. लेकिन हमें इसका फल क्यों नहीं मिलता है. इसलिए नहीं मिलता है कि हम संकल्पित होकर कोई काम नहीं करते हैं. ऋषि मुनियों ने हमारे शरीर में हंसा अवतार के रूप में दे दिया गया है.इसलिए हमें सूर्योदय से डेढ़ घंटा पहले जग जाना चाहिए. जगकर हमें अपने दोनों हाथों का दर्शन करना चाहिए. पृथ्वी माता को प्रणाम करना चाहिए. उसके बाद भगवान के चौदह भगवत भक्तों का नाम स्मरण करना चाहिए. पांच पवित्र स्त्रियों का नाम और सात चिरंजीवियों का भी नाम लेना चाहिए. ऐसा करने से हमें अजपा गायत्री मंत्र का फल प्राप्त हो जाता है.
भगवान् के चरित्रों को भगवान के अनन्त स्वरुपों को ध्यान करते हुए उसे अपने दिल, दिमाग, मन, बुद्धि, चित्त में बैठा लिजिए यही योग है.