प्रतिदिन चार बजे से वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति आचार्य धर्मेन्द्र जी करते है कथा
पंडवा (पलामू):
सिंगरा अमानत नदी तट पर श्री जीयर स्वामी जी ने भगवत कथा के दौरान कहा की गृहस्थ आश्रम में बतलाया गया है कि बिना पुत्र के गति, कल्याण और मंगल नहीं होता है। इससे धार्मिक व्यक्ति भी कभी-कभी विचलित हो जाता है। पुत्र का मतलब होता क्या है..? प- नाम के नर्क से जो उद्धार करा दे उसी का नाम पुत्र है। गृहस्थ किसे कहते हैं..? “गृहणी गृहम् उच्यते” वैदिक परंपरा अनुसार शादी-विवाह हुआ हो, गृहणी से सम्पन्न होकर जो जीवन यापन करता हो, उसे गृहस्थ कहा जाता है। मनुष्य की पहचान क्या है और सज्जन पुरुष किसे कहते हैं, सज्जन पुरुष की पहचान क्या होती है..?
आपसे अधिक अगर कोई गुणवान व्यक्ति हो तो उसके गुण की प्रसंशा, उसके गुण का आदर किजिये। आपसे अगर कोई कम गुण वाला व्यक्ति हो तो उसको सत्पथ पर लगाने का प्रयास किजिये। अगर अज्ञानी व्यक्ति है, नासमझ व्यक्ति हैं तो उसको समझा बुझाकर अच्छे मार्गों पर लगाइए।यह मनुष्य की पहचान है। अगर आपसे गुणवान हो तो उसके प्रति आदर भाव रखिये। और आपसे कम गुण वाला व्यक्ति हो तो उससे मैत्री किजिए, उससे प्रेम किजिए और जो गुण से हीन व्यक्ति हो उसको पुनः सत्पथ पर लाने के लिए उसे प्रेरणा दिजिए।जीवन में कितना भी आपत्ति-विपत्ति, संकट-समस्या आती हो धैर्य बनाए रखना चाहिए।विचलित नहीं होना चाहिये।बड़े आदमी के पास अगर धन-सम्पति, मान-सम्मान, ऐश्वर्य-वैभव, पद-प्रतिष्ठा हो जाए तो उसे सहज हो जाना चाहिये। आपके कृति से लोग जान जायेंगे। सज्जन आदमी की वाणी समाज को शान्ति, समन्वय, समरसता, सहुणता उत्पन्न करने वाला होना चाहिये।अच्छे कार्यों के संकल्प से कभी पीछे नहीं रहना चाहिये।यहीं सज्जन पुरुष की पहचान है।