पड़वा (पलामू)
महाराज पांडू के पांचों पुत्र देवराज इंद्र के अंशी हैं. जबकि द्रौपदी, इंद्र की पत्नी सचि का अवतार. ऐसे में पांडवों के साथ द्रौपदी का वैवाहिक संबंध धर्म के अनुकुल है. द्रौपदी को एक साथ पांच पतियों की पत्नी होने पर उठाए जाने वाले सवाल धर्म के विरुद्ध है. सिंगरा स्थित चातुर्मास व्रत के दौरान मंगलवार को उक्त बातें परम तपस्वी श्री लक्ष्मीप्रपन्न जीयर स्वामी जी ने कही. श्रीमद्भागवत कथा के दौरान महाभारत का संक्षिप्त विवरण देते हुए श्री स्वामीजी ने इस प्रश्न की जटिलता को सुलझाते हुए कहा कि अर्जुन तो इंद्र का साक्षत स्वरूप है. जबकि इंद्र के धर्म तत्व का अंश युधिष्ठिर, बल तत्व का भीम, कला-कौशल का नकुल व सौंदर्य का सहदेव. लिहाजा लौकिक दृष्टि से भले ही ये पांच व्यक्ति हैं, पर वास्तव में इंद्र के एक ही स्वरूप के भिन्न-भिन्न तत्व हैं. कथा को विस्तार देते हुए महाराज श्री ने कहा कि नारी जब कड़वा वचन बोलती है तो संकट की स्थिति उत्पन्न होती है, परंतु वहीं जब मधुर बोलती है तो बड़े से बड़े विपत्ति भी क्षणभर में दूर हो जाते हैं. द्रौपदी व सीता का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि द्रौपदी के कटु वचन ने दुर्योधन के मन में ऐसा विद्वेष पैदा किया कि महाभारत का महासंग्राम हो गया. वही वनवास के दौरान माता जानकी के तीखा व व्यंग्य वचन से आहत लक्ष्मण जी उन्हें छोड़ स्वर्ण मृग का शिकार करने गए भगवान श्रीराम के पीछे भाग गए. जिसका परिणाम भयावह हुआ. कथा को आगे बढ़ाते हुए स्वामीजी ने कहा कि अहंकारियों को दूसरे का वैभव अच्छा नहीं लगता. जिस तरह दुर्योधन को पांडवों द्वारा खुद के रहने हेतु मय राक्षस द्वारा निर्मित कराया गया अजूबा महल खांडवप्रस्थ को देख उसे ईष्र्या हो गई.