विश्रामपुर (पलामू )
विश्रामपुर प्रखंड के भंडार गांव स्थित सुप्रसिद्ध परमहंस बाबा की समाधि स्थल पर गुरु पूर्णिमा के अवसर पर पूजन समारोह का आयोजन किया गया। जहां गुरु श्रद्धा समर्पित करने को ले गांव सहित आसपास से सैकड़ो की तादाद में पहुंचे लोगों ने पूजा अर्चना की। साथ हीं गुरु पूर्णिमा के अवसर पर परमहंस बाबा के बताए निर्देशों को पालन करने व समाज की उन्नति व एकता के लिए कार्य करने का संकल्प लिया गया। साथ हीं जहां भी रहे जैसे भी रहे लेकिन आपसी भेदभाव भूलकर धर्म, समाज व देश की उन्नति में अपना संपूर्ण योगदान देंगे।
लगभग 300 वर्ष पूर्व बाबा परमहंस का भंडार गांव में हुआ था आगमन
स्थानीय लोगों के अनुसार 300 वर्ष पूर्व इस स्थान पर एक परमहंस बाबा रहते थे। जो बहुत ही सिद्ध संत थे। उन्होंने इस स्थल पर जीवित समाधि ले ली थी। आज भी यहां के लोगों के बीच उनकी सूक्ष्म उपस्थिति महसूस की जाती है। लोगों के अनुसार बाबा दूरदर्शी थे। जो समाज की भलाई व सामाजिक परिवेश में रहते हुए केवल धोती व लंगोटी का हीं उपयोग करते थे। लोगों की माने तो इसके अलावे उनके पास कुछ भी नहीं था। बाबा परमहंस सनातन धर्म के संरक्षण, समाज के उत्थान व जगत कल्याण के लिए कार्य किया। उनकी विद्वता समाज को मार्गदर्शन के लिए भी बल प्रदान करने के लिए कार्य आया। गांव के अरविंद पांडेय ने बताया कि समाधि स्थल के पास मौजूद एक बड़ा तालाब उतना ही पुराना है जितना बाबा परमहंस का भंडार गांव में लगाव रहा। बाबा परमहंस के कपड़े आसमान में सुखते थे। स्नान के बाद बाबा अपने गीले वस्त्रों को ऊपर उछाल देते थे जो अदृश्य हो जाती थे। साथ हीं पहनने के लिए सुखी धोती व लंगोटी को उपर हाथ फैला हाथों में ले लेते थे। लोग बताते हैं कि बड़े ही परोपकारी, धर्म के प्रति आस्थावान व समाज के लोगों के दुखों की निवारण करने वाले थे। परमहंस रामकृष्ण के समय से पहले का समय जब परमहंस की पद विलक्षण लोगों प्राप्त होती थी। उस समय यहां एक बहुत बड़ा मठ बना था। जो कालांतर में समाधि व तालाब के सिवा कुछ नहीं बचा है। परमहंस बाबा की समाधि बहुत ही चमत्कारिक है। यहां आकर मांगी गई मनौते अवश्य पूर्ण होती है।
अरविंद ने बताया कि वैशाख पूर्णिमा हीं नहीं सालों भर गुरु बाबा के मठ में श्रद्धा रखने वाले पूजन व आशीर्वाद के लिए आते रहते हैं। बताया कि परमहंस संप्रदाय या परिवार के सैकड़ों वर्ष पहले नैमिषारण से गुरु दीक्षा के लिए गांव में आते थे। गांव के पूर्वज भी कन्नौज से संबंध रखते थे। बाबा परमहंस वृद्ध हो गए तो भंडार गांव में हीं अपनी समाधि लेने की इच्छा अपने शिष्य को बताया। साथ हीं यज्ञ व भंडारे का आयोजन किया गया। बाबा अखंड दीप प्रज्वलित कर जीवित समाधि में चले गए। आज भी परमहंस बाबा के वंशजों का गांव में आना जाना होता है। ब्रहमोरिया, भंडार, बसना व राजहारा गांव एक हीं गोत्र परिवार से आते हैं। जो यहां पूजा अर्चना कर स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते हैं।